गुरु बिना गति नहीं

गुरु बिना गति नहीं….
जीवन में गुरु का धारण क्यूँ जरूरी है?
कौनसा मंत्र जप बिना गुरु के कर सकते है?
मंत्र जप करते समय ध्यान देने योग्य बातें क्या है?
मंत्र जप में दिशा, आसन का महत्त्व?

साधना में गुरु की आवश्यकता क्यूँ होती है

1:- मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है अगर गुरु न मिले तो भगवान शिव को गुरु मानकर साधना करें ।
2- साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
3- गुरु मंत्र का नित्य जप करते रहना चाहिए।अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जप कर सकते हैं।
4- रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है।
5- रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जप कर सकते हैं।
6- गुरु मन्त्र का जप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं।इस प्रकार आप मंत्र जप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा।

गुरु के बिना साधना

1- स्तोत्र तथा सहत्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं।
2- जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं।
3- प्रणव मन्त्र बिना गुरु के जप कर सकते हैं।
4- गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहत्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का जप कर लेना चाहिए।इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है।

मंत्र साधना करते समय सावधानियां

1-मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखें,बेवजह अपनी साधना की चर्चा करते न फिरें।
2- गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें।
3- आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें।
4- तर्क वितर्क और प्रलाप न करें।
5- किसी पर गुस्सा न करें।
6- यथासंभव मौन रहें,अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें।
7- किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न हो, अपमान न करें
8-बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें।
9- ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो अनेक पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है।
8- इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म , लगातार गर्भपात, सन्तान ना होना , अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड़ सकती है।
9- भूत, प्रेत, जिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी न करें, इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है।
10-गुरु और देवता का कभी अपमान न करें।

मंत्रजप में दिशा,आसन,वस्त्र का महत्व

1- साधना के लिए नदी तट, शिवमंदिर, देविमंदिर, एकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है।
2- आसन में काले या लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है।
3- अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशा, आसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं।
4- इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है।
5- जप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है,जितनी भावना के साथ जप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा।
6- यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार न हों तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं।

हर हर महादेव 🚩

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